सम्पूर्ण आहार वट्टिका

चंदन  कुमार पलक वर्मा, संजना देवड़ा

KRISHI VIGYAN KENDRA JHABUA M.P

पशुओं की खिलाई में प्रयुक्त सूखे चारों जैसे कड़वी भूसा, चारा घास आदि के समुचित उपयोग हेतु विभिन्न प्रकार की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक उपचार विधियाँ अपनाई जाती है। भौतिक उपचार के अन्तर्गत कुट्टी काटना, पीसना, गोलियों (Pelleting) बनाना व अधिक दबाव द्वारा आहार की वट्टिका बनाना शामिल है। पीसने व गोलियाँ बनाने से सूखे चारों का आयतन घटने के साथ-साथ इनकी पाचकता में भी वृद्धि होती है। सूखे चारों पर आधारित सम्पूर्ण आहार के ब्लाक (टिका) बनाते समय भूसे के साथ रातिब मिश्रण व अन्य आवश्यक पोषक तत्व भी मिला दिए जाते है जिससे सम्पूर्ण आहार की वटिका (ईंट) में भूसा व दाने की एकरसता के साथ घनत्व व पाचकता में भी वृद्धि होती है। जब आमाशय में चारा व रातिब मिश्रण एक निश्चित अनुपात में पहुँचता है तो उसमें उपस्थित जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है एवं रोमन्ध में उपापचयी उत्पादों के उपयोग में वृद्धि होती है।

सम्पूर्ण आहार वट्टिका पशुओं की दैनिक पोषक तत्वों की आवश्यकताओं के अनुसार बनाई जाती है। इनके निर्माण में 50-70 प्रतिशत सूखे चारों एवं 30 से 50 प्रतिशत दाने का प्रयोग किया जाता है। वट्टिका बनाने की प्रक्रिया में सूखे चारों के साथ दाना समरसहो जाता है जिससे उसकी गुणवत्ता में सुधार होता है। सम्पूर्ण आहार टिका का घनत्व 150 किग्रा प्रति घन मीटर तक होता है जबकि पट्टिका बनाने से पूर्व उसी आहार के मिश्रण का घनत्व 50 किग्रा, प्रति घन मीटर ही होता है। इस प्रकार की वाट्टकाओं का यातायात व मंडारण सुरक्षित आसान एव कम खर्चीला होता है। साधारणतः एक ट्रक अपने स्वीकृत आकार से अधिक भरने के बाद भी मात्र 25 से 30 क्विंटल भूसा ही ले जा सकता है एवं दुर्घटना भी रहती है जबकि एक ट्रक में तैयार पट्टिकाएँ 100-120 क्विंटल तक आसानी से ले जाई जा सकती है।

वट्टिका बनाने की विधि

सम्पूर्ण आहार टिका बनाने में चारों व रातिब मिश्रण का अनुपात पशुओं की शारीरिक अवस्थानुसार निर्धारित किया जाता है। सामान्यतः निर्वाह आहार के लिए बनाई गई संपूर्ण आहार विटिटकाओं में चारा व रातिब मिश्रण का अनुपात लगभग 80:20 व उत्पादन के लिए यह अनुपात 60:40 से 7030 तक हो सकता है। चारों के लिए फसलों के उपोत्पाद जैसे गेहूं का भूसी, कड़वी, मूँगफली का चारा, मोंठ चारा, ग्वार भूसा, सरसों का भूसा, सूखी पत्तियों विभिन्न प्रकार की घासों व चारों को ऊर्जा एवं रेशा के लिए तथा रातिब मिश्रण(दाना) को प्रोटीन एवं ऊर्जा के मुख्य सोत के रूप में प्रयोग करते हैं | पशुओं के लिए दाना बनाने के लिए प्रायःपाँच प्रकार के घटकों जैसे अनाज,खलीया,चोकर-चूरी,खनिजमिश्रण एवं नमक का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न अनाज, खलियों व चोकर-चूरी का चुनाव उनकी स्थानीय बाजार में उपलब्धता एवं कीमत के आधार पर किया जाता है। रातिब मिश्रण में खनिज मिश्रण और नमक की मात्रा प्रायः निश्चित रहती है। मोटेतौर पर अन्य तीन पटक जैसे अनाज, खलियों व चोकर दूरी आदि प्रत्येक को एक तिहाई मात्रा में प्रयोग किया जाता है। पशुओं के दाने में प्रायः प्रोटीन की मात्रा 17-18 प्रतिशत और कुल पाचक तत्वों की मात्रा 70-75 प्रतिशत तक रखी जाती है। दोनों प्रकार के स्रोतों (चारों व रातिब मिश्रण) को विभिन्न अनुपात में मिलाकर भिन्न-भिन्न संघटनों की वट्टिकाबनाई जा सकती है जो पशु की शारीरिक अवस्था के अनुसार पोषक तत्वों की आपूर्ति में समक्ष होती है। सम्पूर्ण आहार वट्टिका बनाने में 5 से 7 प्रतिशत शीरे का प्रयोग भी किया जाता है।

वट्टिका बनाने से पहले चारे दाने व शीरे की निश्चित मात्रा को क्षैतिज मिश्रण मेंभली भांतिमिलाते हैं। जब लगभग 10 से 12 क्विंटल मिश्रण तैयार हो जाता है तब वट्टिका बनाना शुरू करते हैं। मशीन का स्वीच ऑन करने के बाद वट्टिका बनाने का कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है। इसके लिए मशीन के हॉपर के ढक्कन को खोलकर, जितने भार की वट्टिका बनानी हो उतना मिश्रण डालकर ढक्कन को बन्द कर देते हैं। तदोपरांत नियंत्रण पटल से मशीन के स्वचालित चक्र वाले बटन को दबाने पर मिश्रण को दबाकर वट्टिका बनने एवं तैयार वट्टिका को निकासनाल (परनाला) में सरकाने तक की क्रिया सहज ही पूर्ण हो जाती है। इसके पश्चात चक्र के लिए मशीन पुनः तैयार हो जाती है। तैयार की हुई लगभग 10 वट्टिकाएँ मशीन के निकासनाल में तब तक रहती है जब तक कि उसमें और वट्टिकाएं नहीं आ जाती है। वट्टिका बनाने की प्रक्रिया अस्वचालित प्रकार से भी की जा सकती है।

सम्पूर्ण आहार वट्टिकाओं का भंडारण जब शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों में किया जाता है तो दो वर्षों के बाद भी ये पशु उपयोग के लिए उपयुक्त रहती हैं। पॉलीथीन के आवरण या वायु रहित पॉलीथीन के बोरों में इनका भंडारण करने से इनको और भी अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। भंडारण के दौरान भंडारगृह को पानी आदि से बचाना आवश्यक है।

सम्पूर्ण आहार वट्टिकाओं के उपभोग से पशुओं द्वारा आहार का अंतर्ग्रहण अधिक एवं रोमंथ में उसके पाचन व चयापचय की क्रियाएँ भलीभाँति सम्पन्न होती हैं जिसके फलस्वरूप पशु को अच्छा पोषण प्राप्त होता है। वर्धनशील पशुओं को जब इन सम्पूर्ण आहार वट्टिकाओं को खिलाया जाता है तो उनके देहभार में सामान्य से 29 से 48 प्रतिशत अधिक वृद्धि होती है। इसी प्रकार दुधार पशुओं को सम्पूर्ण आहार की पट्टिकाओं को खिलाने से उनका दुग्ध उत्पादन 23 से 34 प्रतिशत बढ़ जाता है।

सम्पूर्ण आहार वटिकाओं में चारे के साथ पेड़ों की पत्तियों का समावेश करने से आहार में प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है। यह प्रभाव तब और अधिक होता है जब पत्तियों का प्रयोग मुख्यतः सरसों या किसी अन्य घटिया चारे के साथ किया जाता है।

लाभ

* उच्च दबाव के कारण धारा व दाना आपस में अच्छी प्रकार से मिल जाते हैं। फलस्वरूप पशु एक निश्चित अनुमान में ही चारे व दाने को खाता है। जिससे पशु के रोमध में इसका किण्डदन समुचित होता है तथा उसे पोषक तत्वों की अधिक आपूर्ति होती है।

* ऊर्जा व प्रोटीन के तारतम्य के कारण पशु आहार की स्वादिष्टता व पाचकता में बढ़ोत्तरी होती है। पशुओं द्वारा चारे की न्यूनतम जूठन छोड़ी जाती है।

* तैयार की गई वट्टिकाएँ भूसे की अपेक्षा एक तिहाई स्थान ही घेरती हैं जिससे इनके भंडारण में आसानी होती है तथा इनके परिवहन में भी सुविधा रहती है।

* यदि आवश्यक हो तो वट्टिका बनाने के दौरान रोगों से बचाव की दवाएँ भी मिलायी जा सकती है। * सम्पूर्ण आहार की वट्टिकाओं का भंडारण बिना किसी दुष्प्रभाव के एक साल तक किया जा सकता है।

* ग्रामीण क्षेत्रों में पशु पालन का ज्यादातर कार्य महिलाओं द्वारा किया जाता है. इस तकनीक से उन पर कार्य का बोझ घट जाता है।

* इस तकनीक से सूखे चारों की प्रचुर मात्रा वाले स्थानों में पट्टिकाएं बनाकर अकालग्रस्त या अभावग्रस्तक्षेत्रों में आसानी से पहुँचायी जा सकती हैं।

सावधानियाँ

* चारे दाने के मिश्रण बनाने में यदि दूरिया उर्वरक का प्रयोग कर रहे हो तो यूरिया को पहले शीरे की निश्चित मात्रा में भलीभाँति घोल लेना चाहिए।

* यदि पशु वाटिका को प्रारंभ में न खो को तोड़कर खिलाना चाहिए।

• क्षैतिज यांत्रिक मिक्सर व वट्टिका बनाने की मशीन पर पूर्ण सतर्कता से कार्य करना चाहिए।