डॉ प्रवीण कुमार सिंह
पोल्ट्री एक्सपर्ट लखनऊ
आज के समय में बढ़ते प्रोडक्शन कॉस्ट पर काबू पाने के लिए व दाने की गुणवत्ता पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए अपना दाना स्वयं बनाने की होड़ लग गयी है। इस प्रचलन के अपने फायदे, नुक्सान व सतर्कता के नियम हैं।
इस लेख में इन तीनों आयामों पर चर्चा की गयी।
सर्वप्रथम आयाम है, अपना फीड बनाने के फायदा
- ब्रायलर, लेयर या ब्रीडर प्रकार के पक्षी में फीड की गुणवत्ता ना सिर्फ बर्ड की प्रोडक्शन, बल्कि उसके स्वास्थय और जीवन प्रत्याशा (LIFE EXPECTANCY) को भी निर्धारित करती है। एक अच्छे कमर्शियल फीड से ज्यादातर यही अपेक्षा होती है कि वह बर्ड की प्रोडक्शन संभंधित मानकों पर खरा उतरे। परन्तु बढ़ते कच्चे माल के दाम व सघन प्रतिस्पर्धा के चलते बर्ड के आंतरिक स्वास्थय व उसकी जीवन प्रत्याशा पर निवेश करना कई बार मुश्किल हो जाता है।
ऐसा नहीं कि ऐसा संभव नहीं। लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि ग्राहक अच्छी चीज़ मांगे और उसके लिए सही कीमत देने को तैयार हो।
इन्ही कारणों की वजह से ज्यादातर किसान अपना दाना स्वयं की कोशिश करते हैं।
अंडा देने वाली मुर्गी के संदर्भ में यह और भी जरूरी हो जाता है कि फीड मुर्गी की तत्कालीन जरूरतों को सम्बोधित कर सकें। उदाहरण के तौर पर कम वजन की मुर्गी, बड़ा अंडा दे रही मुर्गी, बीमारी से उभरती हुई मुर्गी, अत्यधिक सर्दी या गर्मी के मौसम में पल रही मुर्गियां, अपनी जरूरतों के हिसाब से गठित फीड पर ज्यादा अच्छा परफॉर्म करती है। बहुत सारे फीड मिलर्स इस तरीके के फीड ग्राहकों को उपलब्ध भी करवाते हैं। लेकिन हर बार यह संभव नहीं हो सकता।
ऐसे में पानी से चलने वाली दवाइयों से कुछ चीज़ें जोड़ी तो जा सकती हैं, लेकिन कोई चीज़ कम नहीं की जा सकती।
हालाँकि अंडे वाली मुर्गी में यह प्रचलन काफी पहले से शुरू हो चूका है, ब्रायलर में भी यह प्रचलन रफ़्तार पकड़ रहा है।
लेकिन, हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती, और दो पहलु तो एक साधारण —– भी होते हैं। यह तो बहुत ही उलझी हुई चीज़ है। आइये इस प्रचलन के कुछ नुकसानों की बात करते हैं।
कुछ ऐसी बातें है जो फीड मिलर को आपसे अधिक योग्य बनती हैं ।
सही डॉक्टरी परामर्श को प्राप्त करने की क्षमता
- कच्चे माल को कम दाम में खरीदने की क्षमता।
- विभिन्न प्रकार के कच्चे माल को खरीदने व सही तरीके से संरक्षित करने की क्षमता।
- कच्चे माल के लगातार उत्पादन की वजह से कम से कम भण्डारण, व ज्यादा से ज्यादा भण्डारण करने कि क्षमता।
- कच्चे माल व तैयार माल के गुणवत्ता के परीक्षण हेतु खुद की लैब या उत्कृष्ट लैब से संपर्क।
- परेशानी आने पर उसके अति शीघ्र निवारण के लिए उपलब्ध साधन या व्यक्ति।
- और सबसे जरूरी, सही माल को सही समय पर खरीदने का अनुभव व पूंजी।
- बुरे मार्किट में बने रहने के लिए पूंजी।
एक छोटे किसान के लिए यही अपने आप में गतिरोधक हैं। थोड़ा सा दाना बनाने के लिए इतनी क्षमता का निर्वाह करना बहुत मुश्किल होता है। और बुरे दौर में पूंजी फंस जाने पर यह प्रक्रिया पूरी तरह से ठप्प हो जाती है।
कम माल खरीदने की वजह से हर एक सामान और सुविधा पर लगने वाला खर्च बहुत ज्यादा होता है, और यदि गुणवत्ता पर कोई भी समझौता किया तो समझो उलटी गिनती चालू हो गयी।
जो लोग इन साड़ी बातों को समझने के बाद भी या दाना बनाते हैं या बनाना चाहते हैं उसके लिए कुछ सतर्कता की बातें निम्नलिखित हैं।
- खुद अपनी मौजूदगी में कच्चे माल की खरीद, जांच, व रिजेक्शन करें। कुछ मूलभूत सस्ते सयंत्र जैसे कि मॉइस्चर मीटर अपने साथ रखें और कुछ सुलभ तकनीक जैसे कि मक्के का ग्रेन काउंट व ग्रेडिंग संभंधित ज्ञान विकसित करें।
- किसी अच्छी लैब से नियमित तौर से कच्चे माल की जाँच करवाते रहें।
- किसी जानकार वेटरिनरी से ही फार्मूला लें और उसे कम से कम हर महीने अपडेट करते रहें।
- कच्चे माल की खरीद पर अपनी महारथ बढ़ाएं, उनके भण्डारण की आयु व शर्तें जाने और उनका कम से कम समय के लिए भण्डारण करें।
- 5 दवाइयों की मिक्सिंग पर विशेष ध्यान दें। हर दवा को मिक्स करने का तरीक़ा व क्रम होता है। कौन सी दवा किस दवा के साथ मिक्स कर सकते हैं, तथा प्रीमिक्स कैसे बनाना है और कौन सी दवा प्रीमिक्स में नहीं बल्कि मिक्सर में सीधी पड़नी है, यह सारी बारीकियाँ अपने डॉक्टर से समझ लें ।
यदि आप पैलेट दाना बनाते हैं, तो उससे संबंधित तकनीकी बातें भी अच्छे से समझ लें ( जैसे की ग्राइंडर की बारीकी, मिक्सिंग का तरीक़ा व समय, कण्डीशनर का तापमान व अवधि, पैलेट साइज़, रेडी फीड पार्टिकल डिस्ट्रीब्यूशन, पी.डी.आई इत्यादि)। इन बारीक बातों का परफॉरमेंस पर बहुत गहरा असर पड़ता है।
- फीड की परफॉरमेंस पर कड़ी नज़र रखें और कोई भी दिक्कत आने पर शीघ्र अति शीघ्र अपने कंसलटेंट से बात करें।
- कच्चे माल की व दवाइयों की गुणवत्ता अच्छी से अच्छी रखें।
- याद रखें, हर वास्तु की अपनी खुद की खासियत व कीमत होती है। इसलिए कोई भी चीज़ सस्ती या महंगी नहीं होती है। वास्तव में अच्छी या खराब भी नहीं होती है।
बस चीज़ “VALUE FOR MONEY” होनी चाहिए, यानि, अपनी कीमत के अनुरूप प्रदर्शन या योगदान होना चाहिए।
मेरी चर्चा का निष्कर्ष यह है कि अच्छी कंपनी का अच्छा दाना खिलाएं या अपना अच्छा दाना बनाये। ये आपकी रणनीति, सोच, काबिलियत, परिस्थिति, क्षमता व व्यावसायिक कौशल पर निर्भर करता है और दोनों पहलुओं के अपने फायदे-नुक्सान होते हैं।
परन्तु, जो भी चुनाव करें, उसे हलके में ना लें और पूरे ध्यान और ज्ञान के साथ करें।
यदि आप व्यवसाय के इस हिस्से पर पूंजी और समय नहीं लगा सकते तो मत करें। अपने मुख्या व्यवसाय में और अच्छा करें। हर हाल में गुणवत्ता और सजगता को सर्वोपरि महत्व दें।