भारत सरकार का काफी जोर था देश को स्वालम्बी बनाया जाये। यह नेहरू जी के काल से शुरू हो गया था। खाद्यान्य में, दूध उत्पादन में, और भी बहुत सी चीज़ो पर तेजी से काम शुर हो गया था। चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद तो हर दिशा में स्वालम्बी देश को बनाने की बात ने तीव्र गति पकड़ी। बाद में भी हर प्रधानमंत्री – हर सरकार ने इस पर ज़ोर दिया। आज के हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी भी इस पर ज़ोर दे रहे हैं। सेल्फ रिलायंस या स्वालंबन की बात आज़ादी मिलने के बाद तुरंत शुरू हो गयी थी। क्योंकि बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ रहा था या अमेरिका से अनुदान के रूप में आरहा था। इस पर तेज़ी से काम चल रहा था – रिसर्च भी जोरों पर शुरू हो गयी थी। इस स्पीड में प्रगति को देख कर श्री गिलमोर जो कनाडा से हमारे इंस्टिट्यूट पोल्ट्री डेवलपमेंट के लिए इलाहबाद आये थे। अपने लेक्चर में अक्सर कहते थे कि “एक दिन ऐसा आएगा कि भारत विश्व की भूख मिटाएगा”। काफी दिनों से हम सक्षम हैं।
इसी स्वालम्बन की कड़ी में बहुत ही अछि लेयर ब्रीड सन्न 1970 के दशक में बैंगलोर स्थित भारत सरकार के द्वारा निकली गयी। जिसका सारा श्रेय स्वर्गीय डॉक्टर विश्वास को जाता है। इसके बाद इसमें प्रगति कि डॉक्टर चौधरी ने। जिसका नाम डॉक्टर विश्वास ने HH26 रखा था। RSET में काफी अच्छे रिजल्ट आये। उम्मीद थी प्रतिवर्ष उसके उत्पादन क्षमता में कुछ न कुछ बढ़ोतरी होती रहेगी और एक दिन उस समय की उच्च कोटि की आयातित नस्लों को चुनौती देगी। परन्तु ऐसा हुआ नहीं। पता नहीं क्यों रस्ते में ही इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया।
सन्न 1971-73 स्वालंबन के दृष्टिकोण से पोल्ट्री में बहुत महत्वपूर्ण है। स्वर्गीय ठाकुर राम अवतार सिंह पंत नगर स्थित पोल्ट्री डेवलेपमेंट में लगे हुए थे। यह वह जगह थी जहाँ पकिस्तान आये हुए विस्थापितों को बड़े पैमाने पर बसाया जा रहा था। उन्हें सरकार उनकी जीविका के लिए ट्रेनिंग दे कर पोल्ट्री शुरू करवा रही थी। यह सब ठाकुर साहब की छत्र चाय में चल रहा था। पंतनगर युनिवेर्सिटी खुलने के बाद ठाकुर साहब को उसकी पोल्ट्री विभाग ने ले लिया। वहीं वह कार्यरत थे तभी उनकी मुलाकात श्री विनोद जो बरेली स्थित विमको के पहले भारतीय जनरल मैनेजर थे। इससे पहले सिर्फ ‘गोर’ (अंग्रेज़) ही इस पोस्ट पर होते थे। श्री कपूर का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा का था। दोनों आदमी अर्थार्त ठाकुर शब् और कपूर साहब की विचारों में अच्छी जमती थी। अधिकाँश पोल्ट्री पर ही चर्चा होती थी। अगर मैं गलत नहीं तो सन्न 1961-1962 में इनकी बातचीत हाईलाइन-अमेरिका से कोलेबोरेशन की चल रही थी। उस समय भारत सरकार स्वालंबन (SELF RELIANCE) पर काफी ज़ोर दे रही थी दर था आगे चल कर कहीं भारत सरकार ग्रैंड पैरेंट इम्पोर्ट बैन न लगा दे या कस्टम ड्यूटी बहुत बढ़ा दे। दिल्ली मीटिंग में विनोद साहब ने कहा कि “आगे चल कर यदि GP बैन कर दे भारत सरकार तो क्या आप प्योर लाइन दे देंगे”। उनका जवाब “न” में था। अन्तः डील टूट गयी जो लगभग फाइनल हो गयी थी। अतः यह डील यहाँ से टूट कर श्री गुरदीप सिंह कर्नल को चली गयी। ठाकुर साहब और विनोद साहब शुरू से ही प्योर लाइन इम्पोर्ट के पथ पर थे परन्तु कोई टॉप ब्रीड देने को तैयार नहीं था। लगभग 8-9 साल दोनों शांत बैठ गए। इस बीच ठाकुर सहन रिटायर हो गए। विनोद साहब ने उन्हें ‘किराये’ के एक बड़े फार्म पर कमर्शियल लेयर फार्म खोल कर दिया। प्योर लाइन आयात पर स्टडी जारी रही। उन्होंने कनाडा और अमेरिका के RST (रैंडम सैम्पुल टेस्ट) रिपोर्ट कई साल की मंगवा कर स्टडी किया। उन्होंने देखा कुछ ब्रीडर छोटे तो जरूर हैं परन्तु इन नमी गरमी ब्रीडर को टक्कर दे रहे हैं। उनमे से एक ब्रीडर पार्क्स (PARK) था जो लगातार टक्कर दे रहा था। बात चीत हुई और ब्रायलर एवं लेयर दोनों का प्योर लाइन का एग्रीमेंट हो गया।
इसी बीच पूना पर्ल्स के ग्रुप कैप्टन औक जो रानी शेवर के ऐसोशियेट्स थे एक छोटी सी बात को लेकर टकराव हो गया और जनरल साहब ने आगे पैरेंट देने से इंकार कर दिया। ग्रुप कैप्टन औक का काफी पैसा ब्रीडिंग में लगा था एवं महाराष्ट्र में अपनी अच्छी पैंठ बना ली। काफी हताश हुए। दिल्ली आये और मुझे फ़ोन किया। मैं जा कर मिला काफी परेशान थे। मैंने उनसे एक दिन का समय माँगा। जनरल साहब मान गए मीटिंग फिक्स हुई। तय हो गया कि पैरेंट जायेगा लेकिन जनरल साहब ने शर्त रखी कि शेवर कनाडा को जो तुमने लेटर भेजा है उसके सारे लिखो कि “गलत फेहमी” हुई थी। ग्रुप कैप्टन मान गए कि पूना जा कर मैं फ़ौरन लेटर भेजता हूँ। 10 बाद वह फिर दिल्ली आगये-मेरी बात हुई। वह किसी कारन वश लेटर नहीं देना चाहते थे। कहने लगे कोई और रास्ता निकालो। मैंने उन्हें केग्ग फार्म के प्योर लाइन के बारे में बताया। और दूसरे दिन उन्हें और ठाकुर साहब को लंच पर बुला कर बात-चीत करवा दी। बाद में केग्ग फार्म के ऑफिस में इनकी बड़ी मीटिंग हुई। प्योर लाइन आने में अभी कुछ वक़्त था। आने के बाद भी लगभग 18-20 महीने लगते पैरेंट बनने में। ग्रुप कैप्टन औक का कहना था कि आप कुछ पैरेंट मेरे लिए अभी मंगवा दें। इस पर सहमति नहीं बनी। बात टूट गयी। दूसरे दिन पूना जाने से पहले मुझ से फिर मिले। काफी अपसेट थे। मैंने उन्हें कहा कि इज़राइल की एक ब्रीड है जो हर मौसम के लिए बेहतरीन है उससे सम्पर्क करें। उस समय भारत और इज़राइल के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे। उन्होंने कहा कैसे कॉन्टैक्ट करें। मुझे स्वर्गीय श्री SB शरण साहब का ध्यान आया जो आरब्रेकर के MD थे। उनसे फ़ोन पर बात करवाई। उन्होंने दूसरे दिन उन्हें बॉम्बे आने को कहा। कैप्टन सीधे बॉम्बे फ्लाई कर गए। उस समय इज़राइल सरकार का कौंसलर बॉम्बे ही रहता था। सरन साहब ने उससे मीटिंग करवा दी। किस्मत देखिये ग्रुप कैप्टन औक को स्टेट गेस्ट बनवाकर इज़राइल भेज दिया। 10 दिन बाद लोटे – बहुत खुश – _____ का WHITE और BROWN लेयर और ब्रायलर का प्योर लाइन और साथ में WHITE का कुछ पैरेंट भी मिल गया। इस तरह अब भारत में 2 प्योर लाइन ऑपरेशन शुरू होने वाला था।
यह सब हो ही रहा था कि एक और धमाका हुआ। बैरकाक-अमेरिका ने भारत में ग्रैंड पैरेंट का फ्रेंचाइज़ी तलाश करना शुरू किया। रानी-शेवर गुडगाँव की कामयाबी को देख कर जिसके चेयरपर्सन जनरल नेहरा थे, बहुत से रिटायर्ड कर्नल, ब्रीगेडियर एवं जनरल कमर्शियल पोल्ट्री में आ चुके थे। इन्ही में थे ब्रीगेडियर मलिक जिनके बेटे पीटर मलिक रूलमैक इंटरनेशनल पोल्ट्री फार्म सँभालते थे जो लेयर का कमर्शियल फार्म था। उनका फ़ोन आया कल 11 बजे बैरकाक के वाईस प्रेजिडेंट टॉड के साथ मीटिंग फिक्स्ड है। साथ —- होटल चलना पड़ेगा। “रास्ते में साड़ी बात बताऊंगा”। यह नाम जाना पहचाना था। यह इससे पहले आरब्रेकर में थे जहाँ इनको स्वर्गीय BV राव जब हैचरी मैनेजर थे तब और उसके बाद में जनरल मैनेजर थे तब भी “इंटरटेन” किया करते थे। हर साल मिस्टर टॉड आरब्रेकर विजिट पर 2-3 बार आया करते थे। रेट में पीटर ने बताया कि यह यहाँ GP बेचने आये हैं, इसलिए उनसे मिलने चल रहे हैं। क्या सवाल वह करेगा, क्या जवाब देना है, यह सब तुम्हे देखना है। बाकायदा सेकेरेट्री बना हुआ था। पीटर ने वहां अपना लेटर दिखाया उसने “SORRY” कहा और 2 बजे का टाइम दे दिया। 2 बजे वहां पहुंचे मैंने देखा राव साहब एक टेबुल पर बैठे तबला बजा रहे हैं और साथ में श्री डेविड लोबो और क़ाज़ी खड़े हैं। इन्हे देखते ही मैंने पीटर को बता दिया कि हम लोग वक़्त बर्बाद कर रहे हैं। यह BV राव को ही मिलेगा। क्योंकि अब सरन साहब के छोड़ने के बाद यह कंपनी लड़खड़ा रही है और हो सकता है कि राव साहब अपनी कंपनी खड़ा करना चाहते हैं। बहर हाल पीटर एक बार मिलना चाहते थे। अतः वह सेक्रेटरी के पास गए – अब उसने 5 बजे का वक़्त दे दिया। पीटर ने उनसे पूछा “कितने मलने आये” ? उसने कहा “आप और वह जो खड़े हैं”। पीटर ने कहा “चलो वापिस चलते हैं। तुम्हारी बात सही है”। मुझे यकीन था कि राव साहब इसी काम के लिए आये हैं अपने दो सिपेहसालार के साथ। राव साहब और टॉड के संबंधों की पोल्ट्री जगत में काफी चर्चा थी। कुछ ही दिनों में यह खबर पोल्ट्री मैगज़ीन में आगयी। इसी के आस पास स्वर्गीय अरुण गोयल ESSEX फार्म दिल्ली हाईसेक्स लेयर और हाईब्रो ब्रायलर का ग्रैंड पैरेंट ले आये। इस प्रकार 2 प्योर लाइन ऑपरेशन और 2 GP ऑपरेशन भारत में सन्न 1972-73 से प्रारम्भ हो गया। सन्न 73-74 से जहाँ भारत में मुख्या 3 ब्रीड थी अब 7 हो गयी थी। फील्ड में चिक्स आगये थे। अब यहाँ से जहाँ पोल्ट्री इंडस्ट्री शांतिपूर्वक आगे बढ़ रही थी अब युद्ध की स्थिति आगयी। वह भी घमासान युद्ध। जबरदस्त कॉम्पिटेशन प्रारम्भ हो गया। परन्तु पुराणी ब्रेडों का वर्चस्व बना रहा।
इसी दौरान भारत में घटना कहें या दुर्घटना कहें, घटी। मेरिक्स नाम की बीमारी भारत में बिलकुल नहीं थी – न कभी किसी ने देखा था। हाँ विकसित देशों से इसके ऑउटब्रेक की रिपोर्ट आती रही। जहाँ शुरू होती थी वहां लगभग 8 सप्ताह से लेकर प्रोडक्शन शुरू होने तक अधिकांश मोर्तिलिटी होती थी। यह बहुत बड़ी आर्थिक हानि थी। वहां के वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में लगे थे परन्तु सफलता नहीं मिल रही थी। भारत में एका एक इसकी चर्चा होने लगी। प्रारम्भ में किसी के कुछ समझ नहीं आया। परन्तु जब जोरों से फैली और हर ब्रीड में आने लगी तब यह सैम्पुल IVRI भेजा गया, जहाँ मेरिक्स कन्फर्म हुई। इसके बाद सभी डॉक्टर पोस्टमॉर्टम कर के एम डी डेक्लेयर करने लगे। अचानक यह प्रश्न उठा जो बीमारी कल तक यहाँ थी नहीं आज अचानक कहाँ से आगयी ? सौभाग्य से इसका उत्तर जल्दी मिल गया। हाईलाइन के बड़े बड़े ऐसोसिएट्स कई स्टेट में थे। वह नया रिप्लेसमेंट जितना मांग रहे थे उतना हाईब्रीड इंडिया – कर्नल अपने मौजूदा ग्रैंड पैरेंट से दे नहीं सकता था, जबकि उन्होंने GP स्टॉक कुछ बढ़ाया भी था। गड़बड़ी कहाँ हुई कि कुछ पैरेंट जापान से लेकर इन्हे दिया। यह जो स्टॉक आया इसने आग लगायी। सबसे बड़े सपलायर थे क्वालिटी फार्म महाराष्ट्र एवं कसीला फार्म हैदराबाद। जहाँ भी चिक्स यहाँ से गए उसने अपना पूरा रंग दिखा दिया। अजमेर हैचरी में भी यह समस्या थी। इस प्रकार एक साल के अंदर यह बीमारी पूरे देश में फैली। न तो MD का कोई इलाज़ था ना ही इसकी कोई वैक्सीन बैन पाई थी। बस एक ही रास्ता था कम से कम स्ट्रेस एवं बैलेंस सेफ फीड। यह समस्या को कम या ज्यादा करने की क्षमता रखता है।
मेरिक्स के कारण 5 से 25% तक मोर्टेलिटी दर्ज हुई। यह काफी गंभीर समस्या थी। AIAPI (आल इंडिया एसोसिएशन ऑफ़ पोल्ट्री इंडस्ट्री ) के अध्यक्ष श्री सरन ने ‘आपात कालीन’ बैठक दिल्ली में बुलाई। इसके पहले सरन साहब ने भारत को 5 जॉन में बांटा। और मुझे नार्थ जोन दिया गया। सर्वे कर के सेमिनार में रिपोर्ट देनी थी। सेमिनार में स्टेट कृषि मंत्री भी शामिल हुए क्योंकि पोल्ट्री इंडस्ट्री कृषि मंत्रालय में ही आता था। साथ में कुछ वैज्ञानिक जिसमे IVRI के डायरेक्टर DR CM SINGH पोल्ट्री के जॉइंट कमिशनर स्वर्गीय DR JN PANDA भी थे। ब्रीडर्स एवं कुछ बड़े फार्मर्स और फार्मा कंपनी के हेड भी शामिल हुए। सरन साहब ने जो प्रारम्भ कि औपचारिकता समाप्त कर के DR CM SINGH को आदरपूर्वक इन्वाइट किया। बड़ी अच्छी पर्सनालिटी का व्यक्ति जब अंग्रेजी भाषा में बोलने लगा तो भले आप अंग्रेजी कम समझते हों परन्तु जो अंग्रेजी वह बोल रहे थे एवं जिस स्टाइल और जिस एक्सेंट से बोल रहे थे पूरा हॉल सन्नोट में आज्ञा और हर कोई यही चाहता था कि वह अभी और बोले परन्तु 15-20 मिनट में वह सब कुछ कह दिया जिसकी जरूरत थी।
जोन वाइज जब रिपोर्ट पेश हुई तो मेरा नंबर सबसे आखिरी में आया। उस समय सबसे अधिक लेयर हाईलाइन की थी या रानीशेवर की थी। जो 4 नयी ब्रीड आई थी इनकी संख्या बहुत कम थी। मैंने पहले सारे आंकड़े दिए जो हर जोन वालों ने दिए। परन्तु जब मैंने टोटल प्रतिशत बताना शुरू किया हर ब्रीड का तो हाल में —— होने लगी। कुछ लोगों को यह बात पसंद नहीं आई कि हर ब्रीड की अलग अलग कुल संख्या सर्वे में थी और उसमे कितने प्रतिशत मेरिक्स के कारण मोर्तिलिटी हुई। उसका नाम इस लेख में लेना ठीक नहीं है जिनकी ज्यादा थी जिसमे से एक ब्रीड आज की बहुत पॉपुलर लेयर ब्रीड है। हाँ जिनकी बहुत कम थी उनका नाम रानीशेवर और केग्ग फार्म की “कीस्टोन” जो अब नहीं है।
जब मैंने ऑब्जरवेशन दिया तो डॉक्टर CM SINGH बहुत नाराज़ हुए और एक तरीके से मुझे डांट फटकार देने लगे यह तो अल्लाह भला करे स्वर्गीय डॉक्टर JN PANDA का जिन्होंने खुल कर मेरा बचाव किया। सुनिए मैंने क्या कहा जिस पर DR CM SINGH भड़क गए तेह ? मैंने कहा “हर जगह मोर्तिलिटी 8 सप्ताह के बाद शुरू या यूँ कहिये कि R2B वैक्सीन लगने के बाद शुरू हुई। दूसरी महत्वपूर्ण बात वैक्सीन लगाने से पहले काफी फार्मर मेल्स जो सेक्सिंग की गलती वजह से आते हैं उन्हें अलग कर और बड़ा करते हैं। और उसमे R2B नहीं लगाते हैं। उनमे MD लगभग शुन्य थी”। उस समय R2B वैक्सीन IVRI या राज्य सरकारों की प्रोडक्शन सेंटर यह वैक्सीन सप्लाई करती थी। यही कारण था उनके भड़कने का। चिल्ला पड़े “IT MEANS YOU ARE BLAIMING OUR VACCINE”। मैंने तुरंत जवाब दिया “NO SIR” – इसके आगे मुझे बोलने का उन्होंने मुझे मौका नहीं दिया और बौछार पर बौछार करने लगे। ज्यादा बुरा नहीं लगा क्योंकि मैं उनकी स्टाइलिश इंग्लिश सुनने में लगा हुआ था। यह तो जब डॉक्टर JN PANDA ने हस्तक्षेप किया तब मुझे पुनः बोलने का मौका मिला। मैंने साफ़ किया R2B एक स्ट्रांग वैक्सीन हैं जिससे कुछ न कुछ तो रिएक्शन होता है। हर वैक्सीन से कुछ न कुछ स्ट्रेस होता ही है। अतः यही स्ट्रेस MD ऑउटब्रेक का कारण हो सकता है। तब उन्हें ककुछ शांति मिली और मुझे भी मिली। मंत्री महोदय चुप चाप मुस्कुराते हुए सुन रहे थे।
बहार के मुल्कों में टॉप 5 में BV 300 आती थी। परन्तु MD जैसे नयी बीमारी के ऑउटब्रेक के बाद यह 7-8 पर चली गयी थी। भारत में पहले से ही टॉप 2 मौजूद थी। यह उनको टक्कर नहीं दे सकती थी जबकि इसकी उत्पादन क्षमता बहुत अच्छी थी, केवल अवरोधक क्षमता की कमी थी। स्वर्गीय BV RAO – चेयरमैन वेंकटेश्वरा ग्रुप की किस्मत बहुत अच्छी थी कि भारत में इसके उत्पादन शुरू होने के लगभग डेढ़ -दो साल में ही अमेरिका में MD वैक्सीन उपलब्ध हो गयी और भारत सरकार ने आयात करने का तुरंत सभी ब्रीडर्स को लाइसेंस दे दिया।
इसके बाद BV 300 या वेंकटेश्वरा ग्रुप की उन्नति की रफ़्तार इतने तेज़ हुई कि सभी देखते रहे। पोल्ट्री इंडस्ट्री की प्रगति भी तेज़ रफ़्तार थी। अतः पुराने जमे जमाये ब्रेडेरों को ज्यादा समस्या सन्न 80 के दशक तक नहीं हुई। इसके बाद तो उन्हें विशेष रूप से बेबकॉक एवं केग्ग फार्म की पार्क ‘की-स्टोन’ से चैलेंज मिलने लगा।
केग्ग फार्म गुडगाँव ने ‘की-स्टोन’ का पैरेंट भी बना लिया था। उनके पास दो पुराने ब्रीडर जो हाई लाइन के ऐसोसिएट्स थे- पूना के स्वर्गीय पूरी साहब- क्वालिटी फार्म एवं हैदराबाद के स्वर्गीय शेख इमाम कसीला फार्म आगये। यह दोनों ही अपने इलाके के लीडर थे। एवं उनकी एक अच्छी साख और हैसियत थी। वेंकटेश्वरा ग्रुप लेयर ग्रैंड पैरेंट के साथ ब्रायलर ग्रैंड पैरेंट “काब-100” ले आया था जिसने आरब्रेकर ब्रायलर जो भारत में सबसे अधिक बिकने वाली ब्रीड थी काफी जबरदस्त टक्कर दी बल्कि यूँ कहिये “भटका” दिया। केग्गफार्म और पूना पर्ल्स ने भी ‘कगब्रो’ और ‘अनक’ ब्रायलर लगभग साथ ही साथ मैदान में उतर गए।
सन्न 1971-73 स्वालंबन के दृष्टिकोण से पोल्ट्री में बहुत महत्वपूर्ण है। स्वर्गीय ठाकुर राम अवतार सिंह पंत नगर स्थित पोल्ट्री डेवलेपमेंट में लगे हुए थे। यह वह जगह थी जहाँ पकिस्तान आये हुए विस्थापितों को बड़े पैमाने पर बसाया जा रहा था। उन्हें सरकार उनकी जीविका के लिए ट्रेनिंग दे कर पोल्ट्री शुरू करवा रही थी। यह सब ठाकुर साहब की छत्र चाय में चल रहा था। पंतनगर युनिवेर्सिटी खुलने के बाद ठाकुर साहब को उसकी पोल्ट्री विभाग ने ले लिया। वहीं वह कार्यरत थे तभी उनकी मुलाकात श्री विनोद जो बरेली स्थित विमको के पहले भारतीय जनरल मैनेजर थे। इससे पहले सिर्फ ‘गोर’ (अंग्रेज़) ही इस पोस्ट पर होते थे। श्री कपूर का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा का था। दोनों आदमी अर्थार्त ठाकुर शब् और कपूर साहब की विचारों में अच्छी जमती थी। अधिकाँश पोल्ट्री पर ही चर्चा होती थी। अगर मैं गलत नहीं तो सन्न 1961-1962 में इनकी बातचीत हाईलाइन-अमेरिका से कोलेबोरेशन की चल रही थी। उस समय भारत सरकार स्वालंबन (SELF RELIANCE) पर काफी ज़ोर दे रही थी दर था आगे चल कर कहीं भारत सरकार ग्रैंड पैरेंट इम्पोर्ट बैन न लगा दे या कस्टम ड्यूटी बहुत बढ़ा दे। दिल्ली मीटिंग में विनोद साहब ने कहा कि “आगे चल कर यदि GP बैन कर दे भारत सरकार तो क्या आप प्योर लाइन दे देंगे”। उनका जवाब “न” में था। अन्तः डील टूट गयी जो लगभग फाइनल हो गयी थी। अतः यह डील यहाँ से टूट कर श्री गुरदीप सिंह कर्नल को चली गयी। ठाकुर साहब और विनोद साहब शुरू से ही प्योर लाइन इम्पोर्ट के पथ पर थे परन्तु कोई टॉप ब्रीड देने को तैयार नहीं था। लगभग 8-9 साल दोनों शांत बैठ गए। इस बीच ठाकुर सहन रिटायर हो गए। विनोद साहब ने उन्हें ‘किराये’ के एक बड़े फार्म पर कमर्शियल लेयर फार्म खोल कर दिया। प्योर लाइन आयात पर स्टडी जारी रही। उन्होंने कनाडा और अमेरिका के RST (रैंडम सैम्पुल टेस्ट) रिपोर्ट कई साल की मंगवा कर स्टडी किया। उन्होंने देखा कुछ ब्रीडर छोटे तो जरूर हैं परन्तु इन नमी गरमी ब्रीडर को टक्कर दे रहे हैं। उनमे से एक ब्रीडर पार्क्स (PARK) था जो लगातार टक्कर दे रहा था। बात चीत हुई और ब्रायलर एवं लेयर दोनों का प्योर लाइन का एग्रीमेंट हो गया।
इसी बीच पूना पर्ल्स के ग्रुप कैप्टन औक जो रानी शेवर के ऐसोशियेट्स थे एक छोटी सी बात को लेकर टकराव हो गया और जनरल साहब ने आगे पैरेंट देने से इंकार कर दिया। ग्रुप कैप्टन औक का काफी पैसा ब्रीडिंग में लगा था एवं महाराष्ट्र में अपनी अच्छी पैंठ बना ली। काफी हताश हुए। दिल्ली आये और मुझे फ़ोन किया। मैं जा कर मिला काफी परेशान थे। मैंने उनसे एक दिन का समय माँगा। जनरल साहब मान गए मीटिंग फिक्स हुई। तय हो गया कि पैरेंट जायेगा लेकिन जनरल साहब ने शर्त रखी कि शेवर कनाडा को जो तुमने लेटर भेजा है उसके सारे लिखो कि “गलत फेहमी” हुई थी। ग्रुप कैप्टन मान गए कि पूना जा कर मैं फ़ौरन लेटर भेजता हूँ। 10 बाद वह फिर दिल्ली आगये-मेरी बात हुई। वह किसी कारन वश लेटर नहीं देना चाहते थे। कहने लगे कोई और रास्ता निकालो। मैंने उन्हें केग्ग फार्म के प्योर लाइन के बारे में बताया। और दूसरे दिन उन्हें और ठाकुर साहब को लंच पर बुला कर बात-चीत करवा दी। बाद में केग्ग फार्म के ऑफिस में इनकी बड़ी मीटिंग हुई। प्योर लाइन आने में अभी कुछ वक़्त था। आने के बाद भी लगभग 18-20 महीने लगते पैरेंट बनने में। ग्रुप कैप्टन औक का कहना था कि आप कुछ पैरेंट मेरे लिए अभी मंगवा दें। इस पर सहमति नहीं बनी। बात टूट गयी। दूसरे दिन पूना जाने से पहले मुझ से फिर मिले। काफी अपसेट थे। मैंने उन्हें कहा कि इज़राइल की एक ब्रीड है जो हर मौसम के लिए बेहतरीन है उससे सम्पर्क करें। उस समय भारत और इज़राइल के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे। उन्होंने कहा कैसे कॉन्टैक्ट करें। मुझे स्वर्गीय श्री SB शरण साहब का ध्यान आया जो आरब्रेकर के MD थे। उनसे फ़ोन पर बात करवाई। उन्होंने दूसरे दिन उन्हें बॉम्बे आने को कहा। कैप्टन सीधे बॉम्बे फ्लाई कर गए। उस समय इज़राइल सरकार का कौंसलर बॉम्बे ही रहता था। सरन साहब ने उससे मीटिंग करवा दी। किस्मत देखिये ग्रुप कैप्टन औक को स्टेट गेस्ट बनवाकर इज़राइल भेज दिया। 10 दिन बाद लोटे – बहुत खुश – _____ का WHITE और BROWN लेयर और ब्रायलर का प्योर लाइन और साथ में WHITE का कुछ पैरेंट भी मिल गया। इस तरह अब भारत में 2 प्योर लाइन ऑपरेशन शुरू होने वाला था।
यह सब हो ही रहा था कि एक और धमाका हुआ। बैरकाक-अमेरिका ने भारत में ग्रैंड पैरेंट का फ्रेंचाइज़ी तलाश करना शुरू किया। रानी-शेवर गुडगाँव की कामयाबी को देख कर जिसके चेयरपर्सन जनरल नेहरा थे, बहुत से रिटायर्ड कर्नल, ब्रीगेडियर एवं जनरल कमर्शियल पोल्ट्री में आ चुके थे। इन्ही में थे ब्रीगेडियर मलिक जिनके बेटे पीटर मलिक रूलमैक इंटरनेशनल पोल्ट्री फार्म सँभालते थे जो लेयर का कमर्शियल फार्म था। उनका फ़ोन आया कल 11 बजे बैरकाक के वाईस प्रेजिडेंट टॉड के साथ मीटिंग फिक्स्ड है। साथ —- होटल चलना पड़ेगा। “रास्ते में साड़ी बात बताऊंगा”। यह नाम जाना पहचाना था। यह इससे पहले आरब्रेकर में थे जहाँ इनको स्वर्गीय BV राव जब हैचरी मैनेजर थे तब और उसके बाद में जनरल मैनेजर थे तब भी “इंटरटेन” किया करते थे। हर साल मिस्टर टॉड आरब्रेकर विजिट पर 2-3 बार आया करते थे। रेट में पीटर ने बताया कि यह यहाँ GP बेचने आये हैं, इसलिए उनसे मिलने चल रहे हैं। क्या सवाल वह करेगा, क्या जवाब देना है, यह सब तुम्हे देखना है। बाकायदा सेकेरेट्री बना हुआ था। पीटर ने वहां अपना लेटर दिखाया उसने “SORRY” कहा और 2 बजे का टाइम दे दिया। 2 बजे वहां पहुंचे मैंने देखा राव साहब एक टेबुल पर बैठे तबला बजा रहे हैं और साथ में श्री डेविड लोबो और क़ाज़ी खड़े हैं। इन्हे देखते ही मैंने पीटर को बता दिया कि हम लोग वक़्त बर्बाद कर रहे हैं। यह BV राव को ही मिलेगा। क्योंकि अब सरन साहब के छोड़ने के बाद यह कंपनी लड़खड़ा रही है और हो सकता है कि राव साहब अपनी कंपनी खड़ा करना चाहते हैं। बहर हाल पीटर एक बार मिलना चाहते थे। अतः वह सेक्रेटरी के पास गए – अब उसने 5 बजे का वक़्त दे दिया। पीटर ने उनसे पूछा “कितने मलने आये” ? उसने कहा “आप और वह जो खड़े हैं”। पीटर ने कहा “चलो वापिस चलते हैं। तुम्हारी बात सही है”। मुझे यकीन था कि राव साहब इसी काम के लिए आये हैं अपने दो सिपेहसालार के साथ। राव साहब और टॉड के संबंधों की पोल्ट्री जगत में काफी चर्चा थी। कुछ ही दिनों में यह खबर पोल्ट्री मैगज़ीन में आगयी। इसी के आस पास स्वर्गीय अरुण गोयल ESSEX फार्म दिल्ली हाईसेक्स लेयर और हाईब्रो ब्रायलर का ग्रैंड पैरेंट ले आये। इस प्रकार 2 प्योर लाइन ऑपरेशन और 2 GP ऑपरेशन भारत में सन्न 1972-73 से प्रारम्भ हो गया। सन्न 73-74 से जहाँ भारत में मुख्या 3 ब्रीड थी अब 7 हो गयी थी। फील्ड में चिक्स आगये थे। अब यहाँ से जहाँ पोल्ट्री इंडस्ट्री शांतिपूर्वक आगे बढ़ रही थी अब युद्ध की स्थिति आगयी। वह भी घमासान युद्ध। जबरदस्त कॉम्पिटेशन प्रारम्भ हो गया। परन्तु पुराणी ब्रेडों का वर्चस्व बना रहा।
इसी दौरान भारत में घटना कहें या दुर्घटना कहें, घटी। मेरिक्स नाम की बीमारी भारत में बिलकुल नहीं थी – न कभी किसी ने देखा था। हाँ विकसित देशों से इसके ऑउटब्रेक की रिपोर्ट आती रही। जहाँ शुरू होती थी वहां लगभग 8 सप्ताह से लेकर प्रोडक्शन शुरू होने तक अधिकांश मोर्तिलिटी होती थी। यह बहुत बड़ी आर्थिक हानि थी। वहां के वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में लगे थे परन्तु सफलता नहीं मिल रही थी। भारत में एका एक इसकी चर्चा होने लगी। प्रारम्भ में किसी के कुछ समझ नहीं आया। परन्तु जब जोरों से फैली और हर ब्रीड में आने लगी तब यह सैम्पुल IVRI भेजा गया, जहाँ मेरिक्स कन्फर्म हुई। इसके बाद सभी डॉक्टर पोस्टमॉर्टम कर के एम डी डेक्लेयर करने लगे। अचानक यह प्रश्न उठा जो बीमारी कल तक यहाँ थी नहीं आज अचानक कहाँ से आगयी ? सौभाग्य से इसका उत्तर जल्दी मिल गया। हाईलाइन के बड़े बड़े ऐसोसिएट्स कई स्टेट में थे। वह नया रिप्लेसमेंट जितना मांग रहे थे उतना हाईब्रीड इंडिया – कर्नल अपने मौजूदा ग्रैंड पैरेंट से दे नहीं सकता था, जबकि उन्होंने GP स्टॉक कुछ बढ़ाया भी था। गड़बड़ी कहाँ हुई कि कुछ पैरेंट जापान से लेकर इन्हे दिया। यह जो स्टॉक आया इसने आग लगायी। सबसे बड़े सपलायर थे क्वालिटी फार्म महाराष्ट्र एवं कसीला फार्म हैदराबाद। जहाँ भी चिक्स यहाँ से गए उसने अपना पूरा रंग दिखा दिया। अजमेर हैचरी में भी यह समस्या थी। इस प्रकार एक साल के अंदर यह बीमारी पूरे देश में फैली। न तो MD का कोई इलाज़ था ना ही इसकी कोई वैक्सीन बैन पाई थी। बस एक ही रास्ता था कम से कम स्ट्रेस एवं बैलेंस सेफ फीड। यह समस्या को कम या ज्यादा करने की क्षमता रखता है।
मेरिक्स के कारण 5 से 25% तक मोर्टेलिटी दर्ज हुई। यह काफी गंभीर समस्या थी। AIAPI (आल इंडिया एसोसिएशन ऑफ़ पोल्ट्री इंडस्ट्री ) के अध्यक्ष श्री सरन ने ‘आपात कालीन’ बैठक दिल्ली में बुलाई। इसके पहले सरन साहब ने भारत को 5 जॉन में बांटा। और मुझे नार्थ जोन दिया गया। सर्वे कर के सेमिनार में रिपोर्ट देनी थी। सेमिनार में स्टेट कृषि मंत्री भी शामिल हुए क्योंकि पोल्ट्री इंडस्ट्री कृषि मंत्रालय में ही आता था। साथ में कुछ वैज्ञानिक जिसमे IVRI के डायरेक्टर DR CM SINGH पोल्ट्री के जॉइंट कमिशनर स्वर्गीय DR JN PANDA भी थे। ब्रीडर्स एवं कुछ बड़े फार्मर्स और फार्मा कंपनी के हेड भी शामिल हुए। सरन साहब ने जो प्रारम्भ कि औपचारिकता समाप्त कर के DR CM SINGH को आदरपूर्वक इन्वाइट किया। बड़ी अच्छी पर्सनालिटी का व्यक्ति जब अंग्रेजी भाषा में बोलने लगा तो भले आप अंग्रेजी कम समझते हों परन्तु जो अंग्रेजी वह बोल रहे थे एवं जिस स्टाइल और जिस एक्सेंट से बोल रहे थे पूरा हॉल सन्नोट में आज्ञा और हर कोई यही चाहता था कि वह अभी और बोले परन्तु 15-20 मिनट में वह सब कुछ कह दिया जिसकी जरूरत थी।
जोन वाइज जब रिपोर्ट पेश हुई तो मेरा नंबर सबसे आखिरी में आया। उस समय सबसे अधिक लेयर हाईलाइन की थी या रानीशेवर की थी। जो 4 नयी ब्रीड आई थी इनकी संख्या बहुत कम थी। मैंने पहले सारे आंकड़े दिए जो हर जोन वालों ने दिए। परन्तु जब मैंने टोटल प्रतिशत बताना शुरू किया हर ब्रीड का तो हाल में —— होने लगी। कुछ लोगों को यह बात पसंद नहीं आई कि हर ब्रीड की अलग अलग कुल संख्या सर्वे में थी और उसमे कितने प्रतिशत मेरिक्स के कारण मोर्तिलिटी हुई। उसका नाम इस लेख में लेना ठीक नहीं है जिनकी ज्यादा थी जिसमे से एक ब्रीड आज की बहुत पॉपुलर लेयर ब्रीड है। हाँ जिनकी बहुत कम थी उनका नाम रानीशेवर और केग्ग फार्म की “कीस्टोन” जो अब नहीं है।
जब मैंने ऑब्जरवेशन दिया तो डॉक्टर CM SINGH बहुत नाराज़ हुए और एक तरीके से मुझे डांट फटकार देने लगे यह तो अल्लाह भला करे स्वर्गीय डॉक्टर JN PANDA का जिन्होंने खुल कर मेरा बचाव किया। सुनिए मैंने क्या कहा जिस पर DR CM SINGH भड़क गए तेह ? मैंने कहा “हर जगह मोर्तिलिटी 8 सप्ताह के बाद शुरू या यूँ कहिये कि R2B वैक्सीन लगने के बाद शुरू हुई। दूसरी महत्वपूर्ण बात वैक्सीन लगाने से पहले काफी फार्मर मेल्स जो सेक्सिंग की गलती वजह से आते हैं उन्हें अलग कर और बड़ा करते हैं। और उसमे R2B नहीं लगाते हैं। उनमे MD लगभग शुन्य थी”। उस समय R2B वैक्सीन IVRI या राज्य सरकारों की प्रोडक्शन सेंटर यह वैक्सीन सप्लाई करती थी। यही कारण था उनके भड़कने का। चिल्ला पड़े “IT MEANS YOU ARE BLAIMING OUR VACCINE”। मैंने तुरंत जवाब दिया “NO SIR” – इसके आगे मुझे बोलने का उन्होंने मुझे मौका नहीं दिया और बौछार पर बौछार करने लगे। ज्यादा बुरा नहीं लगा क्योंकि मैं उनकी स्टाइलिश इंग्लिश सुनने में लगा हुआ था। यह तो जब डॉक्टर JN PANDA ने हस्तक्षेप किया तब मुझे पुनः बोलने का मौका मिला। मैंने साफ़ किया R2B एक स्ट्रांग वैक्सीन हैं जिससे कुछ न कुछ तो रिएक्शन होता है। हर वैक्सीन से कुछ न कुछ स्ट्रेस होता ही है। अतः यही स्ट्रेस MD ऑउटब्रेक का कारण हो सकता है। तब उन्हें ककुछ शांति मिली और मुझे भी मिली। मंत्री महोदय चुप चाप मुस्कुराते हुए सुन रहे थे।
बहार के मुल्कों में टॉप 5 में BV 300 आती थी। परन्तु MD जैसे नयी बीमारी के ऑउटब्रेक के बाद यह 7-8 पर चली गयी थी। भारत में पहले से ही टॉप 2 मौजूद थी। यह उनको टक्कर नहीं दे सकती थी जबकि इसकी उत्पादन क्षमता बहुत अच्छी थी, केवल अवरोधक क्षमता की कमी थी। स्वर्गीय BV RAO – चेयरमैन वेंकटेश्वरा ग्रुप की किस्मत बहुत अच्छी थी कि भारत में इसके उत्पादन शुरू होने के लगभग डेढ़ -दो साल में ही अमेरिका में MD वैक्सीन उपलब्ध हो गयी और भारत सरकार ने आयात करने का तुरंत सभी ब्रीडर्स को लाइसेंस दे दिया।
इसके बाद BV 300 या वेंकटेश्वरा ग्रुप की उन्नति की रफ़्तार इतने तेज़ हुई कि सभी देखते रहे। पोल्ट्री इंडस्ट्री की प्रगति भी तेज़ रफ़्तार थी। अतः पुराने जमे जमाये ब्रेडेरों को ज्यादा समस्या सन्न 80 के दशक तक नहीं हुई। इसके बाद तो उन्हें विशेष रूप से बेबकॉक एवं केग्ग फार्म की पार्क ‘की-स्टोन’ से चैलेंज मिलने लगा।
केग्ग फार्म गुडगाँव ने ‘की-स्टोन’ का पैरेंट भी बना लिया था। उनके पास दो पुराने ब्रीडर जो हाई लाइन के ऐसोसिएट्स थे- पूना के स्वर्गीय पूरी साहब- क्वालिटी फार्म एवं हैदराबाद के स्वर्गीय शेख इमाम कसीला फार्म आगये। यह दोनों ही अपने इलाके के लीडर थे। एवं उनकी एक अच्छी साख और हैसियत थी। वेंकटेश्वरा ग्रुप लेयर ग्रैंड पैरेंट के साथ ब्रायलर ग्रैंड पैरेंट “काब-100” ले आया था जिसने आरब्रेकर ब्रायलर जो भारत में सबसे अधिक बिकने वाली ब्रीड थी काफी जबरदस्त टक्कर दी बल्कि यूँ कहिये “भटका” दिया। केग्गफार्म और पूना पर्ल्स ने भी ‘कगब्रो’ और ‘अनक’ ब्रायलर लगभग साथ ही साथ मैदान में उतर गए।
सन्न 1974 से भारत अब पोल्ट्री ब्रीडिंग के मामले में बहुत मजबूत स्थिति में आ गया था। सन्न 1962 से 64 के बीच 3 विश्व के प्रमुख ब्रीड आही चुकी थी- रानी शेवर – गुडगाँव शेवर कनाडा के साथ – आरब्रेकर तलेगांव (पूना) आरब्रेकर अमेरिका के साथ एवं हाईलाइन करनाल अमेरिका के साथ। इसके अतिरिक्त सन्न 68 में यूनिवर्सल पोल्ट्री ब्रीडिंग फार्म गुडगाँव चेकोस्लाविया से ग्रैंड पैरेंट लाया। स्वर्गीय कटियाल का यह शौक था। लगभग 9-10 साल बाद उपरोक्त नयी जिनमे केग्ग फार्म गुडगाँव लेयर एवं ब्रायलर का प्योर लाइन, अमेरिका से पूना पर्ल्स-पूना, इसराइल से प्योर लाइन लेयर एवं ब्रायलर को ले कर आई। दो ग्रैंड पैरेंट स्टॉक लेयर एवं ब्रायलर दोनों का आया – वेंकटेश्वरा-पूना लाया काब ब्रायलर एवं BV 300 बेबकॉब USA से एवं ——– फार्म लाया हाईब्रो ब्रायलर एवं हाईसेक्स लेयर हॉलैंड से। इस प्रकार भारत ने काफी मजबूती पकड़ ली ब्रीडिंग के मामले में। इसी प्रकार भारत के कई सेन्टर भारत की सरल पोल्ट्री को बढ़ाने के लिए देसी या देसी टाइप की ब्रीडिंग नस्ल सुधार में काफी कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था।
जो लोग पैरेंट पालते हैं या ब्रीडिंग करते हैं वह भलिभांति जानते हैं कि जब पुराने फ्लॉक में कुछ नए मेल्स डालना हो तो कैसे डालें ? उस समय सारा ब्रीडिंग फार्म डीपलीटर पद्द्ति पर ही चलता था। केज में नहीं था। अतः नए मेल्स मिलाने में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी। यदि आप दिन के उजाले में दरवाजे खोल कर वही डालें तो सारे पुराने मेल्स उसको दौड़ा लेंगे या खदेड़ने लगेंगे। इसमें कुछ मेल्स हताहत भी हो जाते थे। यहाँ तक कि पुराणी मुर्गियां भी उन्हें खदेड़ती थी। अतः समझदार ब्रीडर रात के अँधेरे में उन्हें पीछे ले जा कर छोड़ता। इससे शांति बानी रहती है। कोई नुक्सान नहीं होता। यहाँ भी वही हुआ जब नयी ब्रीड भारत में आई तो सभी पुराने वालों के कान खड़े हो गए। पुराने वालों ने अच्छा खा कमा रखा था। अतः वह नए ब्रीडरों को चैलेंज देने की पूरी क्षमता रखते थे। उस समय पोल्ट्री पर इनकम टैक्स भी नहीं था।। पुराने और नए का दो बड़ा ग्रुप बन गया था।
इस उठा पटक के बीच केग्ग फार्म गुडगाँव ने कमर्शियल चिक्स के साथ पैरेंट का भी उत्पादन शुरू कर दिया था। उसने पोल्ट्री गाइड के कवर पेज पर एक बहुत ही खूबसूरत ऐड निकाला। पोल्ट्री गाइड उस समय कि सबसे प्रचलित पोल्ट्री मैगज़ीन थी। पूरा कवर पेज तिरंगे से रंगा हुआ था। उस पर पैरेंट का ऐड था। साड़ी जानकारी के साथ जो मुख्य लाइन थी – “INDIA WINS FREDDOM-WHY IMPORT GRAND PARENT”। इस वाक्य ने सभी GP वालों के कान खड़े कर दिए। कारण था सरकार चाहती थी कि हम आयात पर निर्भर न रहें। आत्मनिर्भर बने। अब बड़े ग्रुप में तबदीली हुई। सरे नए पुराने GP वाले एक हो गए और बेचारे दो प्योर लाइन वाले एक हो गए। आगे जो युद्ध हुआ अगले अंक में।
सन्न 1962 से 64 के बीच 3 विश्व के प्रमुख ब्रीड आही चुकी थी- रानी शेवर – गुडगाँव शेवर कनाडा के साथ – आरब्रेकर तलेगांव (पूना) आरब्रेकर अमेरिका के साथ एवं हाईलाइन करनाल अमेरिका के साथ। इसके अतिरिक्त सन्न 68 में यूनिवर्सल पोल्ट्री ब्रीडिंग फार्म गुडगाँव चेकोस्लाविया से ग्रैंड पैरेंट लाया। स्वर्गीय कटियाल का यह शौक था। लगभग 9-10 साल बाद उपरोक्त नयी जिनमे केग्ग फार्म गुडगाँव लेयर एवं ब्रायलर का प्योर लाइन, अमेरिका से पूना पर्ल्स-पूना, इसराइल से प्योर लाइन लेयर एवं ब्रायलर को ले कर आई। दो ग्रैंड पैरेंट स्टॉक लेयर एवं ब्रायलर दोनों का आया – वेंकटेश्वरा-पूना लाया काब ब्रायलर एवं BV 300 बेबकॉब USA से एवं ——– फार्म लाया हाईब्रो ब्रायलर एवं हाईसेक्स लेयर हॉलैंड से। इस प्रकार भारत ने काफी मजबूती पकड़ ली ब्रीडिंग के मामले में। इसी प्रकार भारत के कई सेन्टर भारत की सरल पोल्ट्री को बढ़ाने के लिए देसी या देसी टाइप की ब्रीडिंग नस्ल सुधार में काफी कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था।
जो लोग पैरेंट पालते हैं या ब्रीडिंग करते हैं वह भलिभांति जानते हैं कि जब पुराने फ्लॉक में कुछ नए मेल्स डालना हो तो कैसे डालें ? उस समय सारा ब्रीडिंग फार्म डीपलीटर पद्द्ति पर ही चलता था। केज में नहीं था। अतः नए मेल्स मिलाने में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती थी। यदि आप दिन के उजाले में दरवाजे खोल कर वही डालें तो सारे पुराने मेल्स उसको दौड़ा लेंगे या खदेड़ने लगेंगे। इसमें कुछ मेल्स हताहत भी हो जाते थे। यहाँ तक कि पुराणी मुर्गियां भी उन्हें खदेड़ती थी। अतः समझदार ब्रीडर रात के अँधेरे में उन्हें पीछे ले जा कर छोड़ता। इससे शांति बानी रहती है। कोई नुक्सान नहीं होता। यहाँ भी वही हुआ जब नयी ब्रीड भारत में आई तो सभी पुराने वालों के कान खड़े हो गए। पुराने वालों ने अच्छा खा कमा रखा था। अतः वह नए ब्रीडरों को चैलेंज देने की पूरी क्षमता रखते थे। उस समय पोल्ट्री पर इनकम टैक्स भी नहीं था।। पुराने और नए का दो बड़ा ग्रुप बन गया था।
इस उठा पटक के बीच केग्ग फार्म गुडगाँव ने कमर्शियल चिक्स के साथ पैरेंट का भी उत्पादन शुरू कर दिया था। उसने पोल्ट्री गाइड के कवर पेज पर एक बहुत ही खूबसूरत ऐड निकाला। पोल्ट्री गाइड उस समय कि सबसे प्रचलित पोल्ट्री मैगज़ीन थी। पूरा कवर पेज तिरंगे से रंगा हुआ था। उस पर पैरेंट का ऐड था। साड़ी जानकारी के साथ जो मुख्य लाइन थी – “INDIA WINS FREDDOM-WHY IMPORT GRAND PARENT”। इस वाक्य ने सभी GP वालों के कान खड़े कर दिए। कारण था सरकार चाहती थी कि हम आयात पर निर्भर न रहें। आत्मनिर्भर बने। अब बड़े ग्रुप में तबदीली हुई। सरे नए पुराने GP वाले एक हो गए और बेचारे दो प्योर लाइन वाले एक हो गए। आगे जो युद्ध हुआ अगले अंक में।